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टेरीडोफाइटा

By :-prerit kumawat टेरीडोफाइटा:-    यह  वर्ग ब्रायोफाईटा एवं मॉस वर्ग के पादपो के गुणों से कुछ - कुछ समानता रखता हैं। यानी कि हम यह कह सकते हैं कि इस वर्ग में दोनों वर्गों के गुणों का समावेश हैं । अलग अलग जगहों पर उगने वाले पादपो को अलग अलग नाम दिया गया हैं जैसे स्थल में उगने वाले पादपों को स्परमाटोफाइटा कहते है। इसी प्रकार  पादप जल में उगते हैं, उन्हेंं  थेलोफाईटा कहते हैं।  लगभग 35करोड़ वर्ष पूर्व  " डिवोनी युग"  में प्रथ्वी पर इनका बाहुल्य था परन्तु वातावरण में होने वाले परिवर्तन के कारण ज्यादातर पोधे लुप्त हो गए हैं।परंतु कुछ पोधे आज भी पाए जाते हैं। टेरीडोफाइटा फ्रन ओर फ्रन किस्म  के पोधे हैं।कोयले के निर्माण के इनका महत्वपूर्ण योगदान होता है, क्योंकि जो पादप नीचे जमीन मे दब गए हैं वह ऊष्मा के कारण जलकर धीरे- धीरे कोयले में परिवर्तित हो जाते हैं। कोयले के फोंसिलो में मुख्य रूप से  यह पाए जाते हैं। इनका आधिपत्य लगभग 7 करोड़ बरसो तक चला था।इनकी लंबाई  cm. से लेकर 30 m तक होती थी। जैसे जैसे जलवायु में परिवर्तन होते गए इन पादपो का...

ब्रायोफाइट्स

ब्रयोफाइट्स असंवनिय  स्थलीय पादप है,जो नम आवसो में पाए जाते है, जिनमें बहुकोशिकिए द्विगुणित बिजाणुदभिद स्वतंत्र बहुकोशिकीय अगुणित युग्मोदभिद पर परजीवी के रूप में रहता हैं।   ब्रायोफाइट्स  के अंतर्गत  विभिन्न  मोसेस तथा लीवर वर्ट आते हैं जो सामान्यत: पहाड़ों में नम , छायादार स्थानों पर उगते हैं।  ब्रायोफाइट्स  के प्रमुख लक्षण 1.ये  मुख्यत: नम , आद्र एवं छायादार स्थानो पर पाए जाते हैं। 2.पादप चोट होते हैं। ये कभी कभार ज्यादा बड़े हो जाते हैं। 3.इन्हे जगत का उभयचर   कहा जाता हैं क्योकी येे पादप स्थल पर रह सकते हैं लेकिन जनन के लिए जल पर निर्भर रहते हैं।  4. ब्रायो फाइट्स का पादप काय  शेवालो की अपेक्षा अधिक भिन्नित होता हैं।यह थेल्सनुमा तथा श्यान या ऊर्ध्व है सकता हैं।इनमें जड़ ,तने तथा  पत्तियों का अभाव होता हैं लेकिन जड़ - सम, पत्ती- सम एवं   तना- सम  संरचना पाई  जाती हैं। पादप काय आधार जड़  समान संरचना से जुड़ा रहता है,जो मुलाभास  होता हैं। मुला भास एक कोशिकीय या बहु कोशिकीय हो सकता हैं। 5. सवह...

The living world ( संजीव जगत)✨✨✨ क्या कोमा में पड़ा हुआ शख्स सजीव हैं 🤔🤔🤔

Introduction:- हमारे चारों ओर के संजीव जगत में विभिन्न प्रकार के जीव पाए जाते हैं। जो इस ग्रह को रहने के लिए अद्भुत एवम् आश्चर्यजनक बनाते हैं।  हमारी प्रथ्वी पर  अनेक प्रकार के जीव पाए जाते है ओर उनके साथ उनका रहने के आवास बी भिन्न भिन्न होता है  अनेक जीव वैज्ञानिकों ने विभिन्न जीवो का अध्ययन किया और कुछ मापदंडों के आधार पर सजीव एवम निर्जीव वस्तुओ के बीच अंतर किया इन्होंने कुछ  मानक एवम  प्रक्रियाएं भी विकसित की  हम जीवो को समझे में मदद करती हैं। सजीव क्या हैं?(What is living)   सजीव कुछ   कुछ विशिष्ट लक्षण दर्शाते है जो उनको निर्जीव के अलग करने में हमारी मदद करते हैं। वृद्धि, जनन एवम् संवेदनशीलता    ये प्रमुख लक्षण हैं जिन्हें हम सजीवो में    देखते है।इसके अलावा कुछ लक्षण ऐसे  भी हैं जिन्हें हम देख नहीं सकते मतलब वह काया के अंदर होती हैं (उपापचयी, स्व- द्विगुणन, स्व- संघटन) सजीवो  मेंेेंे   विकसित होने की क्षमता होती है, जिसे इनमें देखा या विवेचन किया जा सकता हैं।  सजीवव   के अभिलक्षण ...

लिपिड्स (lipids)

कार्बोहाइड्रेट की भांति लिपिड भी कार्बन( C) ,    हाइड्रोजन(H) , एवं ऑक्सीजन(O) के द्वारा निर्मित होती हैं। ये पानी में अघुलनशील किन्तु क्लोरोफॉर्म इथर या बेंजीन जैसे कार्बनिक विलायकों में घुलनशील होती हैं। लिपिड अत्यंत क्रियाशील अघुलनशील हाइड्रोकार्बन का एक प्रमुख समूह होता है । इसमें कार्बन और हाइड्रोजन के बन्ध सहसंयोजी तथा  अधुविय(Nonpolar)  होते है। इसलिए लिपिड अध्रूविय होते हैं और जल में अघुलनशील होते हैं।   जंतुओं में लिपिड मुख्य रूप से वसा के रूप में पाए जाते है।वसा के एक अणु का निर्माण ग्लिसरीन के एक अणु एवम वसिय अम्ल के तीन अणुओ के संयोग से होता हैं । वसाओं को ट्राइग्लिसराइड भी कहते हैं।रासायनिक संयोजन के आधार पर लिपिड्स को तीन प्रमुख श्रेणियों में बांटा गया है:-                         1:- सरल लिपिड्स(simple lipids)                         2:- सयुक्त या जटिल लिपिड्स(Compound or Complex lipids)           ...

मानव में समतापता

स्तनधारी होने के कारण हम ऊष्माशोषी और साथ-साथ समतापी है। शारीरिक ताप जो 37 डिग्री सेल्सियस होता है, को बनाए रखने के लिए हमारे शरीर में संवेदी बिंदु होते हैं, जो निश्चित चिन्हों का पता लगाते हैं। इसकी तुलना कमरे के वायु अनुकूलन मशीन के ताप स्थापक  के कार्य से की जा सकती है सामान्यत: इसका ताप पर नियंत्रण रहता है यदि कमरे का तापमान नियंत्रित बिंदु से अधिक बढ़ जाता है तो ताप स्थापक के अंदर उपस्थित संवेदी बिंदु बदलाव का पता लगा लेता है और मशीन को तथा अनुसार परिवर्तन हेतु सक्रिय कर देता है। हमारी त्वचा में दो तरह के संवेदी न्यूरॉन पाए जाते है। यह हमारे शरीर के बाहर के तापमान में बदलाव के प्रति संवेदनशील होते हैं और ऊष्मा ग्राही कहलाते हैं। इनमें से कुछ निम्न ताप के प्रति संवेदनशील होते हैं और शीत ग्राही कहलाते हैं। जबकि दूसरे गरम ताप के प्रति संवेदी होते हैं और गर्म ग्राही कहलाते हैं।इनमें से पहली प्रकार के तो ताप कम होने पर उद्दीपन करते हैं जबकि दूसरा ताप बढ़ने पर होता है। इसके विपरीत गर्मी शीतग्राही को रोकती है और ठंडक गरम ग्राही को बंद करती है। गर्म ग्राही अधिचर्म के तुरंत नीचे...

अनुकूलन( Adaptation)

सभी जीवो में  वातावरण की विशिष्ठताओं के अनुरूप हो जाने का विलक्षण गुण होता है, अर्थात किसी भी वातावरण में रहने के लिए प्राणी अपने में जो आकारिकी एवं कार्यकी परिवर्तन करता है उन्हें अनुकूलन कहते हैं किसी जंतुओं में जब इस तरह के अनुवांशिक गुण जो उसको उस वातावरण में रहने और जनन में सहायक होते हैं ,मिलते हैं तो वह जंतु उस वातावरण में आसानी से अनुकूलित होकर रह सकता है। अनुकूलन वातावरण के प्रति संरचनात्मक,  क्रियात्मक , व्यवहारात्मक हो सकता है । वही प्राणी जीवित रहने के अधिकारी बने रहते हैं, जो अपने आप को वातावरण एवं परिस्थिति के अनुरूप अनुकूलित करते हैं जो प्राणी अपने आप को अनुकूलित नहीं कर पाते हैं वह जीवन की दौड़ से बाहर हो जाते हैं। जैसा कि मैंने आपको पहले ही बता दिया कि प्रत्येक प्राणी में उसके आवास के अनुरूप विशिष्ट अभी लक्षण पाए जाते हैं जिसके कारण वे अपने वातावरण के अनुरूप अनुकूलित रहते हैं और सुख चैन से रहते हैं उनमें से कुछ के उदाहरण निम्नलिखित है:- रेगिस्तानी पौधे या तो पत्ती विहीन होते हैं या मोटी गद्देदार पत्तियों सहित रसमय में तने -युक्त होते हैं प्राय: गुंजन पक्षी की...

जीवन और मृत्यु (Survival and Death)

डार्विन के अनुसर जीवन संघर्षों में केवल वे प्राणी जी जीवित रह पाते हैं जो वातावरण के अनुसार अपने आप को अनुकूलित होते हैं। किसी भी स्थान का वातावरण एक जैसा न होकर परिवर्तन होता रहता हैं। जिसके कारण वहां के जीवों  को भोतिक कारको जैसे गरमी, सर्दी , सूखा, बाढ़ भूकंप आदि से जूझना पड़ता है। ऐसे वातावरण में वे ही जीव जीवित रह पाते हैं जो वातावरण के अनुरूप बदलने की क्षमता रखते हैं। जैविक     क्रिया   का समाप्त हो जाना मृत्यु कहलाता है। प्रकृति को संतुलन बनाए रखने में लिए मृत्यु आवश्यक  हैं। जीव का जन्म होता है, उसमे वृद्धि एवं विकास होता हैं। विकसित प्राणी प्रजनन करता है, नयी संतति बनती है, बूढों में जीर्णता  शुरू होती हैं और अंत में मृत्यु हो जाती हैं। किसी भी जीव का अस्तित्व हमेशा नहीं रह सकता। जब एक कोशिका जीर्ण हो जाती है तो विभाजित होना बन्द हो जाती हैं लेकिन कुछ समय तक उपापचय के लिए सक्रिय रहती है और फिर धीरे धीरे लुप्त हो जाती है। हम जानते है कि जीवन मृत्यु की वजह से समाप्त होता है और जीव जीवन की इस हानि को पूरा करने में लिए जनन करते हैं। जीव विज्ञान में मृत...

सजीवो का रासायनिक संघटन

३० तत्व ही सजीव पदार्थ के संघटन में भाग लेते हैं। इन तत्वों में से भी चार प्रमुख दिर्घमात्री तत्व हाईड्रोजन , ऑक्सीजन , नाइट्रोजन तथा कार्बन सजीव पदार्थ का लगभग ९६ प्रतिशत तक भाग बनाते हैं। कार्बन जीवित कोशिका का मुख्य संरचनात्मक तत्व हैं। कार्बन डाइऑक्साइड कार्बन का मुख्य अकार्बनिक स्रोत होता हैं। हमारे वातावरण में केवल ०.०३ प्रतिशत  कार्बन डाइऑक्साइड विद्यमान हैं।  आण्विक ऑक्सीजन जीवनदायक गेस है जो वायुमंडल का लगभग २१ प्रतिशत भाग निर्मित करती हैं। जीवों द्वारा पोषक पदार्थों से ऊर्जा लेने में काम आती हैं। ऑक्सीजन, इलेक्ट्रॉनों की अंतिम ग्राही की तरह कार्य करते है, इसकी अनुपस्थिति में कोशिका में उसकी केवल ५ प्रतिशत कार्य क्षमता रह जाती हैं। हरे पोधे प्रकाश सं्लेषण द्वारा ऑक्सीजन मुक्त करते हैं। यह ऑक्सीजन सम्पूर्ण वातावरणी आण्विक ऑक्सीजन का  मुख्य स्रोत हैं।

बिंदु स्त्राव(Guttation)

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 पतियो के उपातो (Margins) से जल का छोटी- छोटी बूंदों के रुप में स्त्राव( Secretion) बिंदु स्त्राव कहलाता हैं। आलू अरवी ब्रायोफिल्लम कुछ घासों आदि अनेक पोंधो की पतियो में सुबह के समय बिन्दु स्त्राव स्पष्ट दिखता है। जल की यह हानि पत्ती की शिराओं के (Vein endings) अंत पर  उपस्थित छोटे छोटे छिद्रों से होती हैं जिन्हें जल रंध्र  ( Hydathodes)  कहते है। प्रत्येक जल रंध्र के शीर्ष पर एक छिद्र होता हैं जिसे जलछिद्र(Water pore) कहते है। इस छिद्र के चारों ओर उपस्थित कोशिकाओं में कोई गति नहीं होती अत: ये सदैव खुले रहते हैं। जल रंध्र से अंदर की ओर मरदुतक कोशिकाओं का समुह होता हैं जिसे एपिथेम  ( Epithem )ऊतक कहते हैं। अंदर की ओर एपिथेम का सम्पर्क पत्ती की शिराओं की जाएलम वाहिकाओं से होता है।  जड़ द्वारा जल का अवशोषण अधिक पर वाष्प उत्सर्जन कम होने पर जाइलम वाहिकाओं में मूल दाब( Root pressure)  उत्पन्न हो जाता है  जिससे जल जाइलम वाहिकाओं से निकलकर एपिथेम की कोशिकाओं में स्थानांतरित हो जाता हैं। अत: बिंदु स्त्राव ( Guttation)  मूल...

मिलर का प्रयोग

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मिलर का प्रयोग:- प्रेरित कुमावत नोबल पुरस्कार विजेता हेराल्ड यूरे के शिष्य स्टेनले मिलर ने एक अत्यन्त तर्क पूर्ण प्रयोग किया। इस प्रयोग का उद्देश्य उस परिकल्पना का परीक्षण करना था जिसके अनुसार यह माना जाता है कि वह अमीनो अम्ल सदश पदार्थ अमोनिया, जल एवं मिथेन जैसे प्रथम योगिको से बने होंगे। मिलर ने एक विशिष्ट वायु रोधक उपकरण जिसे चिंगारी विमुक्त उपकरण कहते है , उस उपकरण में मिथेन, अमोनिया, हाईड्रोजन (२:१:२) एवं जल का उच्च ऊर्जा वाले विद्युत स्पुलिंग में से परिवहन किया। जलवाष्प एवम् उष्णता की पूर्ति उबलते हुए पानी के पात्र द्वारा कि गई। परिवहन करती हुई जल वाष्प ठंडी व संघनित होकर जल में परिवर्तित हो गई। इस प्रयोग का उद्देश्य उन परिस्थितियों का निर्माण करना था जो कि जीव की उत्पत्ति के समय पृथ्वी पर रही होगी। मिलर ने दो सप्ताह तक इस उपकरण में गेसो का परिवहन होने दिया। इसके बाद उसने उपकरण की 'U' नली मे जमे द्रव को निकाल निरीक्षण किया तो इसमें अमीनो अम्ल ( ग्लाइसिन, एलेनिन, एस्पार्टिक अम्ल, एसिटिक अम्ल)  एवम्   कार्बनिक  अम्लो ( लेक्टिक अम्ल, सक्सिनिक अम्ल, प्र...