टेरीडोफाइटा
By :-prerit kumawat
अलग अलग जगहों पर उगने वाले पादपो को अलग अलग नाम दिया गया हैं जैसे स्थल में उगने वाले पादपों को स्परमाटोफाइटा कहते है। इसी प्रकार पादप जल में उगते हैं, उन्हेंं थेलोफाईटा कहते हैं।
लगभग 35करोड़ वर्ष पूर्व "डिवोनी युग" में प्रथ्वी पर इनका बाहुल्य था परन्तु वातावरण में होने वाले परिवर्तन के कारण ज्यादातर पोधे लुप्त हो गए हैं।परंतु कुछ पोधे आज भी पाए जाते हैं।
टेरीडोफाइटा फ्रन ओर फ्रन किस्म के पोधे हैं।कोयले के निर्माण के इनका महत्वपूर्ण योगदान होता है, क्योंकि जो पादप नीचे जमीन मे दब गए हैं वह ऊष्मा के कारण जलकर धीरे- धीरे कोयले में परिवर्तित हो जाते हैं। कोयले के फोंसिलो में मुख्य रूप से यह पाए जाते हैं।
इनका आधिपत्य लगभग 7 करोड़ बरसो तक चला था।इनकी लंबाई cm. से लेकर 30 m तक होती थी। जैसे जैसे जलवायु में परिवर्तन होते गए इन पादपो का विनाश होता गया।ओर आज इनमें से टरिडफाइटा के बड़े बड़े पेड़ विलुप्त हो गए हैं। इनका स्थान क्रमश: जिम्नस्प्रम एवम् एंजियोस्प्रम ने ले लिया हैं। परन्तु टेरिडोफाइटा के छोटे कद के पोधे आज भी पाए जाते हैं।
यह विशेषत: उष्ण कटिबंधीय देशों में पाए जाते हैं, ओर ये ठन्डे प्रदेशों में पाए जाते हैं।
अभी तक वैज्ञानिको को इनकी 6 हजार जातीय मालूम हो सकी हैं।जबकि पुष्प ओर बीज उत्पन्न करने वाले पोधे की संख्या एक लाख 50 हजार हैं।
अब हम बात करते हैं टरिडफाइटा के गुण धर्म एवम् विशेषताओ की👇👇
टेरीडोफाइटा के गुण धर्म एवम् विशेषताएं निम्न हैं👇👇
👉 इस वर्ग के पोधें में फूल नहीं लगते ,परंतुइनमें वास्तविक जड़े पाई जाती हैं। अधिकांश पोधे में पूर्ण विकसित होती हैं।
👉इनमे उपस्थित ऊतक मॉस के ऊतकों से अधिक विकसित होते हैं
👉इनमे कुछ पोधे ऐसे भी होते है जिनमे जड़ें एवम् पत्तियां नहीं पाई जाती हैं,वैसे पोधे को "संवहनी पोधें"कहते हैं।इनका प्रचारन बीजो से नहीं अपितु बड़े सूक्ष्म बिजानुओ द्वारा होता हैं,जो कि बहुत बड़ी संख्या में बिजनुधानियो में बनते हैं।इनके बिजानू अंकुरित होकर फ्रन नहीं बनते बल्कि ये सूक्ष्म एवम् नगण्य थेलस बनते हैं जिनमें लैंगिक इन्द्रियों जैसे भाग रहते हैं इनमें प्रधनीया होती हैं। इनमे फ्लास्क के आकार की आदियोनी या स्त्री युग्मक होते हैं। दोनों मिलनेे सेे संसेचन होता हैं ।
पुन्युग्मक तेरते हुए स्त्री युग्मज के पास पहुंच कर संसेचन करते हैं। सं सेचन करने के बाद सुकायक से छोटा पोधा विकसित होता हैं,ओर जैसे ही नया पोधा जड़ बन जाता हैं ,तो पुराना पोधा मर जाता हैं।
टेरीडोफाइटा के लेंगिक अंग☘️🍀👇👇
👉 टेरीडोफाइटा के लेंगिक अंग भी कोशिकीय होते हैं। तथा एक बनध्य आवरण द्वारा (जेकिट)द्वारा आवृत होते हैं।
👉 नर जनन अंग को पुधनी एवम मादा जनन अंग को स्त्री धानी कहते हैं।
👉ये दोनों अंग ब्रायोफाईटा के जनन अंगो के समान ही होते हैं।
👉पुंधानी मुदगर या नाशपाती के समान होती हैं, तथा स्त्री धानी फ्लास्कनुमा होती हैं।
टेरीडोफाइटा के आर्थिक महत्व ☘️☘️🍀🍀
टेरीडोफाइटा का आर्थिक महत्व अधिक नहीं होता।
👉इनका सजावट में अधिक उपयोग होता हैं। इनको पत्तियां कोमल,चमकीली एवम् सुंदर होती हैं।इसलिए टेरीडोफाइटाको सजावटी पोधो के रूप में काम में लिया जाता हैं
👉कुछ टेरीडोफाइटा मर्दा बंधक के रूप में होता हैं।
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