मिलर का प्रयोग
मिलर का प्रयोग:- प्रेरित कुमावतनोबल पुरस्कार विजेता हेराल्ड यूरे के शिष्य स्टेनले मिलर ने एक अत्यन्त तर्क पूर्ण प्रयोग किया। इस प्रयोग का उद्देश्य उस परिकल्पना का परीक्षण करना था जिसके अनुसार यह माना जाता है कि वह अमीनो अम्ल सदश पदार्थ अमोनिया, जल एवं मिथेन जैसे प्रथम योगिको से बने होंगे। मिलर ने एक विशिष्ट वायु रोधक उपकरण जिसे चिंगारी विमुक्त उपकरण कहते है , उस उपकरण में मिथेन, अमोनिया, हाईड्रोजन (२:१:२) एवं जल का उच्च ऊर्जा वाले विद्युत स्पुलिंग में से परिवहन किया। जलवाष्प एवम् उष्णता की पूर्ति उबलते हुए पानी के पात्र द्वारा कि गई। परिवहन करती हुई जल वाष्प ठंडी व संघनित होकर जल में परिवर्तित हो गई। इस प्रयोग का उद्देश्य उन परिस्थितियों का निर्माण करना था जो कि जीव की उत्पत्ति के समय पृथ्वी पर रही होगी। मिलर ने दो सप्ताह तक इस उपकरण में गेसो का परिवहन होने दिया। इसके बाद उसने उपकरण की 'U' नली मे जमे द्रव को निकाल निरीक्षण किया तो इसमें अमीनो अम्ल (ग्लाइसिन, एलेनिन, एस्पार्टिक अम्ल, एसिटिक अम्ल) एवम् कार्बनिक अम्लो (लेक्टिक अम्ल, सक्सिनिक अम्ल, प्रोपियनिक अम्ल, एसिटिक अम्ल ) के साथ राईबोज , प्यूरिन आदिि पाए।
सन् १९५१ में केल्विन - मेल्विन ने साइक्लोन नामक यंत्र मे कार्बन डाइऑक्साइड व जल को तीव्र प्रकाश किरणोंं द्वारा विकरनित करके इनसे फार्मिक सक्सीनिक एवं ऑक्जेलिक अम्लों के संश्लेषण कर दिया। भारतीय वैज्ञानिक के. बहादुर (१९५८) ने अमोनिया ,फेरिक क्लोराइड एवं फॉर्म एल्डिहाइड को तीव्र प्रकाश से गुजार कर अमीनो अम्लों का मिश्रण तैयार किया जिसे उन्होंने 'जीवम' कहां। फॉक्स (१९५७) ने अमीनो अम्ल के मिश्रण को 160 से 210°c पर कुछ घंटों तक गर्म करके पॉलिपेप्टाइड का संश्लेषण कियाा। इसे उन्होंनेे प्रोटिडस् कहा।
उक्त प्रयोगों से अनुमान की पुष्टि होती है की आदि सागर काजल विभिन्न कार्बनिक पदार्थों का एक मिश्रण बन चुका था लेकिन ताप इतना अधिक था कि जीवन की उत्पत्ति संभव नहीं थी इसलिए हेल्डेन ने आदी सागर के इस जल को कार्बनिक यौगिकों का गरम सूप (hot soup)या पूर्व जीवी सूप (prebiotic soup)कहा।
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