ब्रायोफाइट्स

ब्रयोफाइट्स असंवनिय  स्थलीय पादप है,जो नम आवसो में पाए जाते है, जिनमें बहुकोशिकिए द्विगुणित बिजाणुदभिद स्वतंत्र बहुकोशिकीय अगुणित युग्मोदभिद पर परजीवी के रूप में रहता हैं। 
 ब्रायोफाइट्स  के अंतर्गत  विभिन्न  मोसेस तथा लीवर वर्ट आते हैं जो सामान्यत: पहाड़ों में नम , छायादार स्थानों पर उगते हैं। 
ब्रायोफाइट्स  के प्रमुख लक्षण
1.ये  मुख्यत: नम , आद्र एवं छायादार स्थानो पर पाए जाते हैं।
2.पादप चोट होते हैं। ये कभी कभार ज्यादा बड़े हो जाते हैं।
3.इन्हे जगत का उभयचर  कहा जाता हैं क्योकी येे पादप स्थल पर रह सकते हैं लेकिन जनन के लिए जल पर निर्भर रहते हैं। 
4. ब्रायो फाइट्स का पादप काय  शेवालो की अपेक्षा अधिक भिन्नित होता हैं।यह थेल्सनुमा तथा श्यान या ऊर्ध्व है सकता हैं।इनमें जड़ ,तने तथा  पत्तियों का अभाव होता हैं लेकिन जड़ - सम, पत्ती- सम एवं   तना- सम  संरचना पाई  जाती हैं। पादप काय आधार जड़  समान संरचना से जुड़ा रहता है,जो मुलाभास  होता हैं। मुला भास एक कोशिकीय या बहु कोशिकीय हो सकता हैं।
5. सवहन ऊतक अर्थात जायलम तथा फ्लोयम का अभाव होता हैं।
6.प्रभावी प्रावस्था या मुख्य पादप काय मुक्तजीवी युग्मोदभिद होता हैं तथा  बिजानु दभिद युग्मोड़भिद पर  उत्पन्न होता हैं।
7. युग्मोंदभिड पादप की अगुनित प्रावस्था है जो सम सूत्री विभाजन  की क्रिया युग्मक उत्पन्न होता है ,इसलिए यह युग्मों दभिड कहलाती हैं।
8. ब्रायो फाइट्स के युगमोड़भिद में  बहु कोशिकीय जनन अंग होते हैं ।नर जनन अंग पुधानी कहलाता हैं तथा मादा जनन अंग फ्लास्कनुमा होती है जो स्त्री धानी  कहलाती हैं।पूधानी   बनध्य जैकेट द्वारा  घिरी रहती हैं जो पुमनू  पुंकोशिकोओ को घेरे रहते है  जो दो दवी कशाभी पुमणओ को उत्पन्न करती हैं। स्त्री धानी फ्लासकनुमा होती हैं जिसमें नलिकिए ग्रीवा तथा फुली हुई अंडधा होती हैं। पुधानी की तरह मादा जनन अंग भी जैकेट द्वारा घिरा रहता हैं। अंडधा की गुहिका में बनध्य अंडधा नाल कोशिका व जनन क्षम अंड पाया जाता हैं। ग्रीवा के अंदर कुछ बन्धय ग्रीवा कोशिकाएं बन्द रहती हैं। 

9. पुमनुओ के स्त्री धानी तक पहुंचने के लिए   तेरने के लिए जल की  बाह्य  परत आवश्यक होती हैं।
10. निषेचन से युग्मनज बनता है, जो स्त्री धानी के अंदर रहता हैं। युग्मनज में तुरन्त न्यून कारी विभाजन नहीं होता है इसके स्थान पर ये सम सूत्री विभाजन द्वारा भ्रूण का निर्माण करते है जो पुन: द्विगुणित  बिजाणुदभिद  में  विकसित होता हैं। ये प्रथम एंब्रियो फाइट हैं।
11.बिजनुद्भिद मुक्तजिवी नहीं होता है लेकिन प्रकाश सनश्लेशी युग्मों दभिद से जुड़ा रहता है तथा इससे पोषण प्राप्त करता हैं।
12. ब्रायो फाइट्स का बिजानुद भिद  संपुट, सीटा और पाद  तीन भागों का बना होता हैं। संपुट के अंदर बिजानू मात्र कोशिकाएं  अर्ध सूत्री विभाजन द्वारा अगुणित बीजानू उत्पन्न करती हैं।
13. ब्रायो फाइट  समबिजाणुक होते है अर्थात् ये केवल एक प्रकार के बीजानु उत्पन्न करते है।
14. बिजानुओ का  प्रकीर्णन वायु द्वारा होता हैं। जैसे ही संपुट वायु द्वारा हिलता हैं तो बीजानु  बाहर निकाल आते हैं तथा बिखर जाते हैं। बीजानुओ में उपयुक्त आधार पर  गिरने के तुरन्त बाद अंकुरित होने की क्षमता होती हैं।
15. कायिक जनन खंडन , गेमी तथा मुकुलन के द्वारा होता हैं।
 
ब्रायो फाइट्स को लिवर् वर्ट्स तथा मोसेस में बाटा गया हैं।

लीवर वर्टस


1. लिवर बर्ट्स सामान्यतया नम ,छायादार आवसो जैसे नदी के किनारों ,दलदल भूमि ,नम मिट्टी, वर्क्षो की छाल तथा लकड़ी पर अधिक गहराई में उगते हैं।
2. लीवर वर्ट का पादप काय थेलाकर होता हैं जैसे  कि मार्केंसिया में। थेलास प्रष्टाधार होता हैं तथा आधार से जुड़ा होता है । प्रणिल सदस्यों जैसे पोरेला में  तने जैसी संरचना पर सूक्ष्म पत्ती जैसे उपांग दो पंक्तियां में व्यवस्थित रहते हैं।
3. अलेंगिक जनन खंडन द्वारा या विशिष्ट संरचनाओ गेमि के निर्माण द्वारा होता हैं। गेमी हरित , बहु कोशिकीय अलेंगिक कलिकाए है जो थेलाई पर  स्थित गेमा को नामक छोटे रिसेप्टेकल में विकसित होती हैं। परिपक्व गेमी पैतृक काय से अलग हो जाती हैं तथा अंकुरित होकर नए पादप को जन्म देती हैं।
4. लैंगिक जनन के समय जनन अंग पुंधानी तथा स्त्री धानी या तो एक ही या भिन्न थिलाई पर उत्पन्न होते हैं। मार्केंसीया में लैंगिक अंग सवृंत रिसेप्टेकल पर उपस्थित रहते हैं। नर जनन अंग पूंधानिधर पर तथा मादा जनन अंग स्त्रीधानी धर पर उत्पन्न होते हैं।
5. युग्मको के संलयन से युग्मनज बनता है जो भ्रूण बिजनुद्भिद में विकसित होता हैं।
6. बिजानुद्भिद पाद  ,सिटा तथा संपुट  में भिन्नित रहता है। सन्पुट
के अंदर बीजानु  मातृ कोशिकाएं अर्ध सूत्री विभाजन द्वारा अगुणित बिजाणु उत्पन्न करती हैं निर्मुक्त होने पर बिजाणु अगुणित मुक्तजीवी युग्मोंदभिद  में अंकुरित  होते हैं।

 
 मोसेस (mosses)
1. मॉस के जीवन   चक्र की प्रमुख प्रावस्था युग्मोंदभिद होती हैं जिसमें प्रोटनिमा तथा प्रणील अवस्थाएं होती हैं।
2. पादप काय प्रनील युग्मोद भिद होता हैं जिसमें बहु कोशिकाएं तथा शाखित मुलाभास होते हैं।इनमें उर्धावधर , पतला अक्ष होता हैं जिस पर पत्तियां सर्पिल व्यवस्थित होती हैं । यह अवस्था लैंगिक अंगो को जन्म देती हैं ।
3. लैंगिक जनन में जनन अंग पूंधानी  तथा स्त्रीधानी  प्रनिल प्ररोह के अग्रभाग पर उत्पन्न होते हैं।जनन अंग एक ही पादप की भिन्न शाखाओं पर उपस्थित रहते हैं।
4. प्रत्येक पुंधानी बहुत से दवि कशाभी पुमनु उत्पन्न करती हैं।
5. प्रत्येक स्त्री धानी जनन क्षम अंड उत्पन्न करती हैं।
6.जल की सहायता से युग्मकों के संलयन के परिणाम स्वरूप युग्मनज का निर्माण होता हैं। युग्मनज बिजनुद्भिद में विकसित होता है, जो पाद , सीटा तथा संपुट में  भिन्नित रहता हैं।
7. संपुट के अंदर दो बिजाणु पुटक बन्द रहते है,जिनमें अर्ध सूत्री विभाजन द्वारा बिजाणु बनते हैं। मॉसेस में बिजाणु प्रकीर्णन की जटिल क्रियाविधि होती हैं।

8. नीर्मुक्त होने पर बिजाणु विसरपी, ,हरित , शाखित  तथा प्राय: तंतुमय अवस्था में अंकुरित होता है, जो प्रोटिनिमा कहलाती हैं।
9. मॉसेस में कायिक जनन द्वितीयक प्रोटोनिमा में खंडन तथा मूकुलन द्वारा होता हैं। पर्णील प्रावस्था द्वितीयक प्रोटनीमा से पार्श्व कलिका के रूप में विकसित  होती हैं।
10. मोसेस के सामान्य उदाहरण  फयुनेरिया, पोलिट्रैकम तथा स्फेगनम हैं।

आर्थिक महत्व

1.मिट्टी अपरदन को रोकना:- ब्रायो फाइट्स मुख्यत: मॉस मिट्टी के उपर सघन पट्टियों  का निर्माण करते है तथा वर्षा से मिट्टी के अपरदन को रोकते हैं।

2. मिट्टी निर्माण:- मॉस  चट्टानी   क्षेत्रों पर पादप अनुत्कमण में महत्वपूर्ण कड़ी है। ये लाई केन द्वारा बनाई गई चट्टानी विधरिका से मित्रिके निर्माण में भाग लेते हैं। सफेगनम की वृद्धि तालाब व झील को अत्यंत मिट्टी से भर देती हैं।

3.जल धारण क्षमता:- शुष्क सफैग्नम में जल अवशोषण की क्षमता अधिक होती हैं। मालियो द्वारा इस लक्षण का प्रयोग नवोदभिद तथा कटे हुए पदपो को वाष्पोतसर्जन व प्रवर्धन के समय नम बनाए रखने के लिए किया जाता हैं। स्फे गनम मॉस का प्रयोग कपास के स्थान पर अवशोषक के रूप में किया जाता हैं।अतः इसे कोटल मॉस भी कहते हैं।

4. पीट:- स्फैग्नम प्राय:अम्लीय दलदली क्षेत्रो में उगता हैं।मॉस व अन्य दलदली पादपो के पुराने मर्त भाग धीरे - धीरे हजारों वर्षो में कार्बनिकर्त , सपीडित होकर जीवाश्म में बदल जाते हैं तथा इनसे गहरा स्पंजी पुंज पीट बनाते हैं पीट को सुखाकर , संपीड़ित कर तथा काटकर इससे ब्लॉग बनाए जाते हैं।पीट ब्लॉग का प्रयोग ईंधन के रूप किया जाता हैं। पीट एक अच्छी खाद भी हैं ।यह मिट्टी की  शरियत को भी दूर करता हैं तथा इसकी जल धारण क्षमता व इसमें वातन को भी बढ़ाता हैं। 

5. अन्य उपयोग:- शेलमय तथा हिमशित क्षेत्रों में मॉसस अनेक जंतुओ जैसे पक्षियों के लिए भोजन के उपयुक्त स्रोत हैं। पॉलीट्रैकम कोम्युन के काढ़े को प्रयोग  पथरी के निपटारन में किया जाता हैं

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

भारत की ऐसी झील 🌊जहा मछलियों 🌊से भी ज्यादा मानव कंकाल मिलते हैं🤔☠️☠️

भारत के कुछ डरावनी जगह (most hounted places in India part -2)

क्या एक बार मरने के बाद इंसान दुबारा वापस आ सकता हैं 🥺😱

48 हजार साल से बर्फ के नीचे दबा था ज़ोंबी वाइरस,वैज्ञानिकों ने दुबारा जिंदा किया ।😯🤯

BCG(बीसीजी) टेस्ट क्या होता हैं ,क्या कैंसर के इलाज में बीसीजी का उपयोग किया जा सकता हैं।

मिलर का प्रयोग

कोन है अमृत पाल सिंह जिसके पीछे पूरे पंजाब की पुलिस लगी हुई हैं 🤔🤔

भारत के कुछ अजीबों गरीब डरावनी जगह 😵‍💫 जिनके बारे मैं सोचने से भी डर लगता हैं।