अनुकूलन( Adaptation)
सभी जीवो में वातावरण की विशिष्ठताओं के अनुरूप हो जाने का विलक्षण गुण होता है, अर्थात किसी भी वातावरण में रहने के लिए प्राणी अपने में जो आकारिकी एवं कार्यकी परिवर्तन करता है उन्हें अनुकूलन कहते हैं
किसी जंतुओं में जब इस तरह के अनुवांशिक गुण जो उसको उस वातावरण में रहने और जनन में सहायक होते हैं ,मिलते हैं तो वह जंतु उस वातावरण में आसानी से अनुकूलित होकर रह सकता है। अनुकूलन वातावरण के प्रति संरचनात्मक, क्रियात्मक , व्यवहारात्मक हो सकता है । वही प्राणी जीवित रहने के अधिकारी बने रहते हैं, जो अपने आप को वातावरण एवं परिस्थिति के अनुरूप अनुकूलित करते हैं जो प्राणी अपने आप को अनुकूलित नहीं कर पाते हैं वह जीवन की दौड़ से बाहर हो जाते हैं।
जैसा कि मैंने आपको पहले ही बता दिया कि प्रत्येक प्राणी में उसके आवास के अनुरूप विशिष्ट अभी लक्षण पाए जाते हैं जिसके कारण वे अपने वातावरण के अनुरूप अनुकूलित रहते हैं और सुख चैन से रहते हैं उनमें से कुछ के उदाहरण निम्नलिखित है:-
रेगिस्तानी पौधे या तो पत्ती विहीन होते हैं या मोटी गद्देदार पत्तियों सहित रसमय में तने -युक्त होते हैं प्राय: गुंजन पक्षी की चौच पहुंच पतली और लंबी होती है जिससे यह फूलों का रस चुसती है।
यह भी देखा गया है कि आर्केड की कुछ जातियां आकार गंध और रंग में मधुमक्खियों की कुछ जातियों की तरह समानता लिए होती है ऐसा होने के कारण नर मक्खियां गलती से आर्केड पुष्प से मिथुन करना चाहती है और ऐसा करते हुए यह अपने प्रागकन एक पुष्प से दूसरे पुष्प पर स्थानांतरित कर देते हैं अधिकांश जलीय जंतुओं में पानी को धकेलने के लिए क्षपनि समान उपांग पाए जाते हैं बतखो में जाली युक्त उपांग पाए जाते हैं वायुवीय आवास में रहने वाले प्राणियों में उड़ने के लिए पंख पाए जाते हैं बिल कारी प्राणियों में बिल खोजने के लिए रूपांतरित उपांग या संरचनाएं पाई जाती है तथा स्थली आवास के लिए उपयुक्त उपांग पाए जाते है।
अनुकूलनशिलता जो जीवों का एक महत्वपूर्ण गुण है जिसके कारण प्राणी निरंतर बदलते वातावरण के अनुरूप अपने आप को अनुकूलित करते रहते हैं का उद्विकास में बहुत महत्व होता है,।
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