बॉडी फ्लूड्स (body fluids 🩸🩸)
सभी सजीव कोशिकाओं जीवित रहने के लिए पोषक पदार्थो की जरूरत होती हैं और इन पोषक पदार्थो के पाचन से अपशिष्ट और हानिकारक पदार्थ भी बनते हैं,जो की शरीर के लिए बहुत हानिकारक होते हैं। जिस कारण उन्हे शरीर से निरंतर बाहर निकाला जाता हैं जो की एक निश्चित प्रक्रिया द्वारा होता हैं।
जैसे:-
सरल जीवों (सिलेंट्रेटा व स्पंज) में इस प्रक्रिया के लिए देहगुहा होती हैं।
जटिल जीवों में इस प्रकार की प्रक्रिया के लिए सबसे बॉडी में विशिष्ट प्रकार का तरल पाया जाता है।
जटिल जीव जैसे मानवों में इस प्रकार के कार्य के लिए सबसे सामान्य रूप से पाया जाने वाला तरल रुधिर (blood) हैं।
आज हम रक्त के बारे में बात करेंगे।
**BLOOD (रुधिर)
यह एक तरल संयोजी उत्तक है, जो तरल मैट्रिक्स, प्लाज्मा, व कोशिकाओं से मिलकर बना होता हैं।रुधिर में प्लाज्मा 55% और अन्य भाग 45 % होते हैं।
प्लाज्मा, यह हमारी बॉडी में पाए जाने वाले तरल में से एक हैं, जो की निर्जीव पदार्थ होता हैं और कोशिकाओं के बीच में पाया जाता हैं।
यह हल्के पीले रंग का लसिला तरल होता हैं,जो रक्त का मैट्रिक्स बनाता हैं।
प्लाज्मा का संघटन ( composition of plasma)
प्लाज्मा अनेक चीजों से मिलकर बना होता हैं जो की इस प्रकार हैं:-
1.Water (जल):- प्लाज्मा में water 90-92%होता हैं।
2.protin(प्रोटीन) :- प्लाज्मा में प्रोटीन 6- 8%पाया जाता हैं जिनमे से फाइब्रिनोजन, ग्लोबुलिंस और एल्ब्यूमिन मुख्य प्लाज्मा प्रोटीन हैं।
a. फाइब्रिनोजन:- यह यकृत से बनता हैं,जो एक स्कंदन कारक होता हैं।
b. ग्लोबुलिन्स:- यह शरीर की सुरक्षा (प्रोटेक्शन) क्रियाविधि में भाग लेती हैं।
c. एल्ब्यूमिन:- यह प्रसारणी संतुलन को बनाए रखती हैं जो की जल को कोशिकाओं से बाहर निकलने में मदद करता हैं।
3. Minerals( खनिज):- प्लाज्मा में खनिजों की मात्रा अल्प होती हैं।
4. प्लाज्मा में ग्लूकोज, अमीनो अम्ल, लिपिड्स भी उप.होते हैं जो की प्लाज्मा द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पर गति करते रहते हैं।
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स्कन्दन प्रोटीन रहित प्लाज्मा को सीरम कहते हैं.
FORMED ELEMENTS(निर्मित अवयव)
इसके अंदर R.B.C., W.B.C., और प्लेटलेट्स आते हैं।
R.B.C.(इरिथ्रोसाइट्स ):- रुधिर में सबसे अधिक मात्रा में इरिथ्रोसाइट्स पाई जाती हैं।
:- एक वयस्क मानव mm–³ रुधिर में R.B.C. की संख्या 5M से 5.5M होती हैं।
संरचना और कार्य ( shap and structure):-
Shape :- अधिकांश मैमल्स में R.B.C. का आकार उभ्यावतल होता हैं। इनमे केंद्रक अनुपस्थित होता हैं। (ऊंट और लामा में उपस्थित होता हैं।)
1. R.B.C. में केंद्रक नही होने के कारण हिमोग्लोबिन को अधिक स्थान प्राप्त होता हैं।
R.B.C. में कार्बोनिक एन्हाइड्रेट एंजाइम पाया जाता हैं। जिसका कार्बन डाइऑक्साइड के परिवहन में महत्व है।
**R.B.C. में हिमोग्लोबिन की मात्रा:-
स्वस्थ मानव में प्रति 100 ml रूधिर में 12-16-gms हिमोग्लोबिन होता हैं। हिमोग्लोबिन में Fe होता हैं।
:- R.B.C. का निर्माण को रक्ताणु उत्त्पति(erythropoiesis) कहते हैं।
Work (कार्य):-
1.R.B.C. में पाया जाने वाला हिमोग्लोबिन गैसों के परिवहन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं। Hb ऑक्सी - जन के साथ जुड़कर ऑक्सीहिमोग्लोबिन बनाता हैं जिसका प्रयोग भोजन के ऑक्सीकरण में होता हैं।
2.RBCs उत्तकों से फेफड़ों तक कार्बन डाइऑक्साइड को भी परिवहित करती है।
हिमोग्लोबिन के द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड का वहन कार्बेमिनोहिमोग्लोबिन के रूप में होता हैं।
रुधिर का निर्माण होना हिमोपोइसिस कहलाता हैं।
W.B.C(ल्यूकोसाइट्स)
ये हिमोग्लोबिन की अनुपस्थिति के कारण रंगहीन होती हैं।
इनकी संख्या इरिथ्रोसाइट्स की तुलना में बहुत कम होती हैं रक्त के mm -³ में इसकी संख्या 6000- 8000 होती हैं।
आकार और संचरना (shape and structure)
इनमे अमीबीय गति होती हैं, इस कारण यह कोशिका भित्ति की छिद्र से पार हो जाते हैं, और वाले स्थल पर गति करते हैं।
कणिका विहीन W.B.C.
1. लसिकाणु (lymphocytes):-
यह कुल लसिकाणु का 20-25% होती हैं।इनमे कोशिका द्रव्य की मात्रा कम होती हैं।ये मुख्यत दो प्रकार की होती हैं। B और T लसिकाणु होती हैं।यह शरीर की प्रतिरक्षा के लिए उत्तरदायि होती हैं।
2.MONOCYTES(मोनोसाइट्स):- यह सबसे बड़ी और अमिबीय आकार की होती हैं। रक्त में यह ऊत्तकों में पाई जाती हैं जहां यह मेक्रोफेज बन जाती हैं।
यह भक्षी प्रकृति की होती हैं जो जीवाणु व अन्य कोशिकीय कचरे को निगलती हैं।
कणिका युक्त W.B.C.
ये तीन प्रकार की होती हैं।
(a.) eosinophils (ईओसिनोफिल्स):- इनमे एंटीHहिस्टामिन गुण पाए जाते हैं।ये संक्रमण को रोकती हैं।यह लाईसोसोम से समानता रखती हैं। यह एक दूसरे से परजीवी अवस्था में जुड़कर सतह पर लाइसोसोमल एग्जाम को मुक्त कर इनको नष्ट कर देती हैं।
(b) besophils (बेसोफिल):- यह कुल wbc में सबसे कम पाई जाती हैं।(0.5-1%) इनमे केंद्रक में तीन पिंड होते हैं।
ये कोशिकाएं सेरेटोनिन, हिपेरीन स्त्रावित करती हैं।
(c) neutrophils (न्यूट्रोफिल):- यह कुल wbc में सबसे अधिक पाई जाती हैं, (60-65%)होती हैं
यह कोशिका भित्ति की कोशिकाओं के बीच दबी रहती हैं। यह भक्षी प्रकृति की होती हैं।यह रोग कारक जीवाणु को निगलकर उनका पाचन करती हैं।
निर्माण :- इनका निर्माण अस्थिमज्जा में होता हैं । अस्तिमज्जा में B- लसिकाणु का परिपक्वन होता हैं। जबकि T- लसिकाणु का परिपक्वन थाइमस में होता हैं।
जीवन काल( life span):- इनका जीवन काल रक्त में 4-8 घंटे होता हैं। जबकि ऊतकों में 4 से 5 दिन होता हैं। मोनोसाइट्स का जीवनकाल 10 -20 घंटे होता हैं। जबकि लसिकाणु का जीवनकाल कुछ दिनों से लेकर महीनों या कई वर्ष तक हो सकता हैं।
लूकोसाइट्स(leucocytosis):- WBC की संख्या का बढ़ना लूकोसाइटोसिस कहलाता हैं। यह मुख्यत संक्रमण की जगह पर होता हैं।
3 थ्रोंबोसाइट्स (रुधिर प्लेटलेट्स):- यह सबसे सुक्ष्म होती हैं।
संख्या:- रक्त में mm-³ में इनकी संख्या 150,000- 350,000 होती हैं।
आकार एवम् सरंचना:- ये कोशिका के खंड हैं, वास्तविक कोशिकाएं नहीं हैं। ये गोल या अंडाकार होती हैं। इनमे केंद्रक अनुपस्थित होता हैं।
निर्माण (formation) :- अस्थि मजा की विशिष्ट कोशिकाओं से मिलकर बनी होती है इनको मेगाकेरियो साइट्स कहते है।
जीवन काल :- रुधिर प्लेटलेट्स का जीवनकाल लगभग 1 सप्ताह होता है यह प्लीहा व यकृत में नष्ट होती है।
कार्य:- रक्त स्कंदन में इन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है इनसे कहीं पदार्थ का स्त्रावण करता है जो रक्त स्कंदन में भाग लेते हैं थकता का अधिकांश भाग बनाती है और प्लाज्मा में स्कंदन कारक को सक्रिय करती है अतः फाई - ब्रिन सूत्रों का निर्माण करती है।
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